Epilepsy in Hindi | अपस्मार आयुर्वेद अनुसार – भेद, लक्षण, पूर्वरूप और सम्प्राप्ति

व्याधि परिचय पूर्वोत्पन्न विषयों का पुनः ज्ञान होना या स्मरण होना इसे ‘स्मृति’ कहते हैं। जिस व्याधि में इस स्मृति […]

व्याधि परिचय

पूर्वोत्पन्न विषयों का पुनः ज्ञान होना या स्मरण होना इसे ‘स्मृति’ कहते हैं। जिस व्याधि में इस स्मृति का नाश होता है या स्मृति कम होती है उस व्याधि को अपस्मार कहते हैं। आचार्य चरक के मतानुसार स्मृति, बुद्धि एवं मन के कार्यनाश को अपस्मार कहते हैं। अपस्मार एक मानस व्याधि है। इस व्याधि में प्रकुपित दोषों का स्थानसंश्रय चेतना स्थान हृदय (मस्तिष्क) में होता है और हृदय (मस्तिष्क) की दृष्टि होने से अपस्मार व्याधि की उत्पत्ति होती है।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में अपस्मार की तुलना Epilepsy से की जा सकती है। उन्माद रोग में बुद्धि का पूर्ण विनाश नहीं होकर केवल बुद्धि का विभ्रम होता है। जबकि अपस्मार में वेग के समय बुद्धि का पूर्ण विनाश हो जाता है अर्थात् रोगी वेग के समय पूर्णतः संज्ञाहीन (Unconcious) हो जाता है।


व्युत्पत्ति- अपस्मार पद ‘अप’ उपसर्ग पूर्वक ‘स्मृ-स्मरणे’ धातु से ‘घञ्ं’ प्रत्यय करने पर अपस्मार शब्द की व्युत्पत्ति होती है।


निरुक्ति– ‘अप’ शब्द गमनार्थ का वाचक है। ‘स्मार’ से तात्पर्य है स्मरण अर्थात् जिस व्याधि में स्मरण शक्ति का लोप हो जाता है उसे अपस्मार कहते हैं। परिभाषा-व्यतीत विषय के विज्ञान अथवा स्मरण को स्मृति कहते हैं तथा अप शब्द का ‘गमनार्थ’ अथवा ‘परिवर्जन’ अर्थ होता है।


इन दोनों शब्दों के संयोग से अपस्मार शब्द बना है। अर्थात् जिस व्याधि में रोगी स्मृति ज्ञान के नष्ट हो जाने से किसी भी स्थान में (पृथ्वी पर) गिर जाता है तथा प्राण नाश की स्थिति उत्पन्न हो जाती है उसे अपस्मार रोग कहते हैं। आचार्य चरक के अनुसार स्मृति, बुद्धि एवं मन के विभ्रम के कारण बिभत्स चेष्टा करते हुए चिरकालावस्थायी अन्धकार में डूबते हुए की प्रतीति होने को अपस्मार कहते है


प्रमुख निदान

अपस्मार व्याधि के निदानों का संहिता ग्रन्थों में निम्न प्रकार से वर्णन मिलत है। 

I. आहारजन्य निदान

१. अहितकर आहार सेवन 

२. अशुद्ध आहार सेवन

३. विरुद्धाहार का अत्यधिक सेवन

४. मलिन आहार का सेवन

५. पुर्यषितान्न अत्यधिक सेवन

६. आहार सेवन के नियमों का पालन नहीं करना


II. विहारजन्य निदान –

१. अधारणीय वेगों का धारण करना

२. दिनचर्या एवं ऋतुचर्या का पालन नहीं करना

३. रजस्वला स्त्री के साथ सम्भोग करना ४. सद्वृत्त पालन नहीं करना

५. मन्त्र, तन्त्रादि प्रयोगों में गलती करना 


III. मानसिक निदान

१. चिन्ता, काम, भय, क्रोध, शोक, उद्वेग इनका प्रमाण से अधिक उत्पन्न होना

२. मन की अस्थिरता ३. मन का रज एवं तम दोष से व्याप्त होना


IV. इन्द्रियार्थ निदान

१. इन्द्रियार्थों का हीनमिथ्यातियोग

२. सत्व गुण का दुर्बल होना


V. दोषज निदान

१. अपस्मार के भेदानुसार तद् तद् दोषों को प्रकुपित करने वाले निदान अपस्मार के भी निदान होते हैं।


सम्प्राप्ति

उपरोक्त निदान सेवन से वात आदि शारीर दोष एवं रज, तम यह मानसिक दोष प्रकुपित होते हैं। यह प्रकुपित दोष बुद्धि के निवासस्थान हृदय (मस्तिष्क) में स्थानसंश्रित होते हैं और मनोवह एवं संज्ञावह स्रोतसों का अवरोध उत्पन्न करके स्मृति का विनाश करते हुए अपस्मार व्याधि की उत्पत्ति करते हैं।


सम्प्राप्ति चक्र

चिन्ता, शोक आदि मानसिक निदान –> दोषप्रकोपक निदान –> वात आदि शारीर एवं रज, तम इन मानसिक दोषों का प्रकोप –> प्रकुपित दोषों का बुद्धि के निवासस्थान हृदय (मस्तिष्क) में स्थानसंश्रय –> मनोवह एवं संज्ञावह स्रोतसों का अवरोध –> स्मृति का विनाश –> अपस्मार


सम्प्राप्ति घटक

दोष–वात, पित्त, कफ शारीर दोष रज, तम मानस दोष

दृष्य – स्मृति, मन अधिष्ठान-बुद्धि का निवासस्थान हृदय (मस्तिष्क) एवं संज्ञावह स्त्रोतस—मनोवह स्रोतस, संज्ञावह स्रोतस

स्रोतोदुष्टि प्रकार– विमार्गगमन व्याधि स्वभाव– दारुण

साध्यासाध्यता- कृच्छ्रसाध्य


भेद- अपस्मार के निम्न ४ भेदों का वर्णन सभी ग्रन्थों में मिलता

१. वातज अपस्मार

२. पित्तज अपस्मार

३. कफज अपस्मार

४. सन्निपातज अपस्मार


पूर्वरूप- अपस्मार व्याधि में निम्न पूर्वरूप मिलते हैं—

१. निरन्तर भ्रू का विक्षेप (Regular throbbing in eye-brows) 

२. नेत्रों में विकृति होना (Deformity in eyes)

३. शब्द न होने पर भी कानों में कुछ शब्दों को सुनना (Tinnitus) 

४. अत्यधिक लालास्त्राव और नासिका से अत्यधिक मात्रा में कफ का निकालना (Excessive salivation and excessive nasal discharge)

५. भोजन के प्रति द्वेष (Anorexia)

६. हृदय में जकड़ाहट (Stiffness in cardiac region)

७. दुर्बलता (Weakness) ८. मोह (Confusion)

९. मूर्च्छा (Fainting)

१०. भ्रम (Vertigo)

११. स्वप्न में मद, नाचना, काँपना और गिरना आदि (Different activities during sleep)

१२. हृत्कम्प (Palpitation)

१३. निद्रानाश (Insomnia)


सामान्य लक्षण-अपस्मार व्याधि में निम्न लक्षण सामान्यतः प्रकट होते हैं 

१. रोगी मूर्च्छित होता है (Unconciousness)

२. मुख से फेन निकलता है (Frothing from mouth)  

३. हस्तपाद में विक्षेप होते हैं अथवा कम्प उत्पन्न होता है (Convulsions or tremors in hands and feet) 

४.नेत्र में विकृति (Deformity in eyes) 

५. अत्यधिक लालाखाव (Excessive salivation) ६. वेग के जाने के बाद गहरी नींद आती है (Deep sleep)

७. दाँतों का किटकिटाना (Teeth biting)

८. विवृताक्षता (Fixation of pupils)

९. भूमि पर गिरना (Fainting) 

१०. कालान्तर में पुनः संज्ञावान होना (To regain conciousness after some time) 

११. स्मृति नाश अथवा स्मृति हानि (Memory loss or reduced memory) 


भेदानुसार लक्षण

I. वातज अपस्मार के लक्षण-वातज अपस्मार में निम्न लक्षण मिलते

१. कम्पन होता है (Tremors in the body)

२. दाँतों का किटकिटाना (Teeth biting)

३. फेन का वमन होना (Vomiting of froth)

४. श्वास की गति में वृद्धि (Increased Respiration Rate) ५. वस्तु परुष, अरुण या कृष्ण वर्ण की प्रतीत होना


II. पित्तज अपस्मार के लक्षण-पिराज अपस्मार में निम्न लक्षण मिलने 

१. पीत वर्ण का फेनोद्गम होता है (Yellowish froth comes out)

२. रोगी का अंग, मुख एवं नेत्र पीत वर्ण के होते हैं। (Body face and eyes mouth)

३. अत्यधिक तृष्णा (Excessive thirst)

४. शरीर में अत्यधिक उष्णता उत्पन्न होती है।


III. कफज अपस्मार के लक्षण–कफज अपस्मार में निम्न लक्षण मिलते 

१. मुख से श्वेत वर्ण का फेनोद्गम (Whitish froth comes out through mouth) 

२.रोगी का शरीर, मुख एवं नेत्र श्वेत वर्ण के हो जाते हैं (Body, face and eyes becomes whitish) 

३. शरीर शीतल हो जाता है (Body face and eyes becomes whitish)

४. शरीर गौरव (Heaviness in body) ५. अपस्मार का वेग देर तक रहता है। (Attack lasts for longer duration)


IV. सन्निपातज अपस्मार के लक्षण – सत्रिपातज अपस्मार में निम्न लक्षण मिलते हैं—


तीनों दोषों के समस्त लक्षण यदि एकसाथ पाए जायें तो सत्रिपातज अपस्मार चाहिए।


सापेक्ष निदान

अपस्मार व्याधि का सापेक्ष निदान निम्न व्याधियों के साथ किया जा सकता है—

१. उन्माद

२. मूर्च्छा


अपस्मार व्याधि में दोषानुसार वेग आने का काल


दोष काल
वातज अपस्मार १२ दिन
पित्तज अपस्मार १५ दिन
कफज अपस्मार १ माह

S no. साख्यासाध्यता
१. एकदोषज अपस्मार साध्य होता है।
२. सन्निपातज अपस्मार एवं क्षीण पुरुष में उत्पन्न अपस्मार असाध्य होता है।
३. एकदोषज जीर्ण अपस्मार असाध्य होता है।

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